4046
जो तुम बोलो
बिखर जाएँ,
जो
तुम चाहो संवर
जायें...
मगर यूँ टूटना
जुड़ना,
बहुत तकलीफ
देता हैं...
4047
मुझे वक़्त गुजारनेक़े लिए,
मत
चाहा कर...
मैं भी इन्सान हूँ,
मुझे भी
बिखरनेसे...
तकलीफ
होती हैं...
4048
बहुत तकलीफ देती हैं ना,
मेरी बातें
तुम्हें...
देख लेना एक
दिन,
मेरी खामोशी
तुम्हें रुला देगी...।
4049
तुझसे अच्छे तो,
जख्म हैं मेरे...
उतनी ही तकलीफ
देते हैं,
जितनी बर्दास्तकर सकूँ...!
4050
चेहरेपर उदासी,
ना ओढिये साहब;
वक़्त ज़रूर तकलीफका हैं,
लेकिन
कटेगा मुस्कुरानेसे
ही।
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