9411
ये रक़ीबोंक़ी हैं सुख़न-साज़ी,
बे-वफ़ा आप हों ख़ुदा न क़रे...
मर्दान अली खां राना
9412क़ुछ न क़हनेसे भी,छिन ज़ाता हैं एज़ाज़-ए-सुख़न...ज़ुल्म सहनेसे भी,ज़ालिमक़ी मदद होती हैं llमुज़फ़्फ़र वारसी
9413
रेख़्ताक़े क़स्रक़ी,
बुनियाद उठाई ऐ 'नसीर' l
क़ाम हैं मुल्क़-ए-सुख़नमें,
साहिब-ए-मक़्दूरक़ा ll
शाह नसीर
9414मुल्हिद हूँ अग़र मैं,तो भला इससे तुम्हें क़्या...मुँहसे ये सुख़न,ग़ब्र ओ मुसलमाँ न निक़ालो...मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
9415
तिरे सुख़नक़े,
सदा लोग़ होंगे ग़िरवीदा,
मिठास उर्दूक़ी,
थोड़ी बहुत ज़बानमें रख़...!!!
मुबारक़ अंसारी
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