4 May 2023

9411 - 9415 रक़ीब ज़ुल्म ज़ालिम सुख़न शायरी

 
9411
ये रक़ीबोंक़ी हैं सुख़न-साज़ी,
बे-वफ़ा आप हों ख़ुदा न क़रे...
                       मर्दान अली खां राना

9412
क़ुछ न क़हनेसे भी,
छिन ज़ाता हैं एज़ाज़-ए-सुख़न...
ज़ुल्म सहनेसे भी,
ज़ालिमक़ी मदद होती हैं ll
मुज़फ़्फ़र वारसी 

9413
रेख़्ताक़े क़स्रक़ी,
बुनियाद उठाई ऐ 'नसीर' l
क़ाम हैं मुल्क़-ए-सुख़नमें,
साहिब-ए-मक़्दूरक़ा ll
                               शाह नसीर

9414
मुल्हिद हूँ अग़र मैं,
तो भला इससे तुम्हें क़्या...
मुँहसे ये सुख़न,
ग़ब्र ओ मुसलमाँ न निक़ालो...
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

9415
तिरे सुख़नक़े,
सदा लोग़ होंगे ग़िरवीदा,
मिठास उर्दूक़ी,
थोड़ी बहुत ज़बानमें रख़...!!!
                              मुबारक़ अंसारी

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