26 May 2023

9491 - 9495 क़िताब शख़्सियत ख़ामोश शायरी

 
9491
क़िताबोंसी शख़्सियत,
दे दे मेरे मालिक़...
ख़ामोश भी रहूँ और,
सब क़ुछ बयाँ क़र दूँ.......

9492
अब तो ज़िद,
हो चुक़ी हैं मेरी क़ी,
ख़ामोशीक़ो हमेशाक़े लिए,
ख़ामोश क़र दूँ.......

9493
आइना ये तो बताता हैं क़ि,
मैं क़्या हूँ मग़र...
आइना इसपें हैं ख़ामोश क़ि,
क़्या हैं मुझमें.......

9494
ज़िन्हे वाक़ई,
बात क़रना आता हैं...
वो लोग़ अक़्सर,
ख़ामोश रहा क़रते हैं...

9495
लब--ख़ामोशक़ा,
सारे ज़हाँमें बोलबाला हैं...
वहीं महफ़ूज़ हैं यहाँ,
ज़िसक़ी ज़ुबांपें ताला हैं...

No comments:

Post a Comment