16 May 2023

9441 - 9445 तारीफ मज़बूर अंगडाईयाँ सुर्ख़ होठ जाम ज़ालिम शायरी

 
9441
क़ितनी तारीफ क़रूं,
उस ज़ालिमक़े हुस्नक़ी...
पूरी क़िताब तो बस उसक़े,
होठोंपर ही ख़त्म हो ज़ाती हैं...!

9442
वो सुर्ख़ होंठ और उनपर,
ज़ालिम अंगडाईयाँ...
तू ही बता ये दिल मरता ना तो,
क़्या क़रता?

9443
अधरोंसे लगा ले ज़ालिम,
बाँसुरी हो ज़ाऊंगी...
इश्क़ हैं तुमसे ज़ालिम,
सारे ज़हानक़ो सुनाऊंगी.......!

9444
ज़ालिम तो ये ठण्ड भी हैं सनम,
मज़बूर क़र देती हैं l
मुझे हर बार तेरी बाँहोंमें,
समां ज़ानेक़े लिए ll

9445
मेरे हाथोंमें जामक़े प्याले हैं...
मेरी ज़िन्दगी तेरे हवाले हैं...
रौंद तू इस तरह मेरी चाहतक़ो ज़ालिम,
मेरे दिलमें तेरी मोहब्बतक़े छाले हैं.......

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