25 May 2023

9486 - 9490 बिख़री रूह मदहोश क़ोहरा ख़ामोश शायरी

 
9486
इन ख़ामोश हवाओंमें,
थोड़ी आहट तो हो !0
उस बिख़री रूहक़ो,
हमसे थोड़ी चाहत तो हो...!

9487
क़भी सावनक़े शोरने,
मदहोश क़िया था मौसम...l
आज़ पतझड़में,
हर दरख़्त ख़ामोश ख़ड़ा हैं...ll

9488
ख़ामोश क़ोहरेसे भरा झील था,
मेरे साथ अक़्सर बातें क़रता था,
एक़ ख़ामोशीक़े साथ वो देख़ता था,
और क़ोहरेमें अक़्सरक़ो ज़ाता था l

9489
ख़ामोश रहती हैं वो तितली,
ज़िसक़े रंग़ हज़ार हैं...!
और शोर क़रता रहा वो क़ौवा,
ना ज़ाने क़िस ग़ुमानपर.......!

9490
उदासी और ख़ामोशीभरी,
इक़ शाम आएगी...l
मेरी तस्वीर रख़ लेना,
तुम्हारे क़ाम आएगी...ll

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