6481
आग लगाना,
मेरी फितरतमें नहीं हैं...
मेरी सादगीसे लोग जलें तो,
मेरा क्या कसूर.......!
6482
फितरत गुलो-बुलबुलकी
जो थी,
वही अब भी
हैं...
सौ बार खिजाँ
आयी,
सौ बार बहार
आई.......!
6483
हवादिससे उलझकर,
मुस्कराना मेरी फितरत हैं...
मुझे दुश्वारियोंपें,
अश्क बरसाना नहीं आता...
मोहम्मद इकबाल खान
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मेरी हस्ती शौके-पैहम,
मेरी फितरत इज्तिराब...
कोई मंजिल हो मगर,
गुजरा चला जाता
हूँ मैं...
जिगर मुरादाबादी
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ना कहना फिर कि,
साँस हूँ तुम्हारी...
यूँ पलपलका भरकर छोड़ देना,
फितरत बन गयी
हैं तुम्हारी.......