6801
लिखना था कि,
खुश हैं तेरे बगैर भी यहाँ हम...
मगर कमबख्त,
आँसू हैं कि कलमसे पहलेही चल दिए...
6802
हयात एक मुस्तकिल,
गमके सिवाय कुछ भी
नहीं ;
शायद खुशीभी याद आती
हैं,
तो आँसू बनके
आती हैं.......
साहिर लुधियानवी
6803
तेरा दिया हुआ,
आख़री तोहफ़ा हैं ये आँसू...
मगर इन्हें बहने नहीं दूँगा.......
6804
हिम्मत तो इतनी
थीं कि,
सागर भी पार
कर सकते थे...!
मजबूर इतना हुए
कि,
दो बुंद आँसूओंने
डुबा दिया...!!!
6805
बाद तुम्हारे सब अपनोंके,
मनमाने व्यवहार हुए...
मुस्कानें ही क्या,
आँसूभी सालाना त्योहार हुए...