Showing posts with label जिन्दगी उमीद लकीरें वक़्त हाथोंपर शायरी. Show all posts
Showing posts with label जिन्दगी उमीद लकीरें वक़्त हाथोंपर शायरी. Show all posts

15 November 2020

6766 - 6770 जिन्दगी उमीद लकीरें वक़्त हाथोंपर शायरी

 

6766
हाथकी लकीरें,
भी कितनी शातिर हैं...!
कमबख्त मुट्ठीमें हैं,
लेकिन काबूमें नहीं.......!!!

6767
एक घडी खरीदकर,
हाथमें क्या बांध ली...
वक़्त पीछे ही,
पड गया मेरे.......
      
6768
मैने पूछा था कि,
जिन्दगी क्या हैं...
हाथसे गिरकर,
जाम टूट गया.......
            जगन्नाथ आजाद

6769
गया जो हाथसे,
वो वक़्त फिर नहीं आता;
कहाँ उमीद कि फिर,
दिन फिरें हमारे अब...

6770
कब्रकी मिट्टी हाथ मैं लिए,
सोच रहा हूँ...
कि लोग मरते हैं तो,
गुरुर कहाँ जाता हैं.......!