15 October 2018

3426 - 3430 दिल मोहब्बत इश्क अजीब नशा मशहूर अल्फ़ाज़ों कागज़ उम्र खामोशी शायरी


3426
अजीबसा नशा होता हैं,
इश्के शायरीमें...
वरना लिखते मीर भी थे अच्छे !
पर मशहूर ग़ालिब हुये.......!

3427
ये "शायरी" भी...
"दिल" बहलानेका एक"तरीका" हैं;
जिसे हम "पा" नहीं सकते...
उसे"अल्फ़ाज़ों" में जी लेते हैं.......

3428
मिला क्या हमें,
सारी उम्र मोहब्बत करके...
बस एक शायरीका हुनर,
याद भरी रातोका जागना.......

3429
बड़ी देर कर दी,
मेरा दिल तोड़नेमें...
जाने कितने शायर,
मुझसे आगे चले गये.......

3430
बहुत दिनोंके बाद,
उसका कोरा कागज़ आया...
शायर हूँ साहेब,
लिखी हुई खामोशी पढ ली मैने...

14 October 2018

3421 - 3425 दुनिया कदम विरह महेफिल वक्त बेकरारी बयाँ लब्ज ख्वाइश दर्द फुर्सत शायरी


3421
शायरीकी दुनियामें कदम रखा,
तभी पता चला...
विरहकी महेफिलमें भी,
वाह-वाह बोलते हैं.......!

3422
हर वक्त शायरी नहीं होती, जनाब...
कभी कभी बेकरारी भी बयाँ होती हैं.......!

3423
ये शायरी और कुछ हीं साहब,
अधूरे ख्वाइशेंके मेले हैं;
जिसे हम पा हीं सकते,
उन्हें हम लब्जोमें जी लेते...!

3424
जाने किस हुनरको,
शायरी कहते होंगे लोग...
हम तो वो लिख रहे हैं,
जो कह ना सके उससे...!

3425
अपने दर्दको बयाँ करने हैं,
तो शायरी सीखिये, ज़नाब...
अब लोगोको फुर्सत कहाँ,
एहसासको सुननेकी.......!

3416 - 3420 जिंदगी कहानी फूल करीब ख्वाहिश नसीब याँद सपने निशान वक़्त बरसात शायरी


3416
यूँही उम्रके साथ,
बढ़ रही थी अधूरी कहानी;
साँसोंमें तुम समा गयी,
और जिंदगीका पता चला...

3417
एक फूल अजीब था,
कभी हमारे भी बहुत करीब था
जब हम चाहने लगे उसे,
तो पता चला...
कि वो किसी दूसरेका नसीब था

3418
"कोई खास फर्क नहीं पडता,
अब ख्वाहिशें अधूरी रहनेपर;
बहुत करीबसे कुछ सपनोंको,
टूटते हुए देखा हैं मैने.......!"

3419
खतरेके निशानके,
बहुत करीब बह रहा हैं...
उम्रका पानी ।
और, वक़्तकी बरसात हैं कि
थमनेका नाम ही नहीं ले हीं ।।

3420
याँदोंके स्पर्श बडे़,
अजीब होते हैं...!
कोई भी ना हो पास,
फिर भी ये बहुत करीब होते हैं.......!!!

12 October 2018

3411 - 3415 मोहब्बत किस्मत आँख रौशनी इंतज़ार मुलाकात बात नाराज़ याद खयाल ख्वाब शायरी


3411
रोज़ रात आते हैं वो,
मिलने ख्वाबोंमें...
मेरे सोतेही मेरी,
किस्मत जाग जाती हैं...!

3412
मिलने आयेंगे हम आपसे ख्वाबोंमें,
ये ज़रा रौशनीके दिये बुझा दीजिए;
अब नहीं होता इंतज़ार आपसे मुलाकातका...
ज़रा अपनी आँखोंके परदे तो गिरा दीजिए

3413
जाने किस बातपें
नाराज़ हैं वो हमसे...
ख्वाबोंमें भी मिलते हैं,
तो बात नहीं करते...

3414
जब किसीकी याद सताए,
हवा जब बादलोंको सहलाए,
कर लो आँखे बंद और सो जाओ,
क्या पता जिसका हैं खयाल,
वो ख्वाबोंमें जाए.......!

3415
क्यों ना हो तेरा साया,
मेरे मनपर...
मैने ख्वाबोंमें भी सिर्फ,
तुझसे जो मोहब्बतकी हैं.......!

3406 - 3410 जिंदगी मुस्कान मोहब्बत पैगाम नज़र तमन्ना आदत ख्वाब खामोश आँसू शायरी


3406
आँसू वो खामोश दुआ हैं...
जो सिर्फ़ खुदा ही सुन सकता हैं

3407
जिंदगीका बहुत,
सीधासा परिचय हैं...
आँसू वास्तविक हैं,
मुस्कानमें अभिनय हैं...!

3408
रिश्तोंकी यह दुनिया हैं निराली,
सब रिश्तोंसे प्यारी हैं मोहब्बत तुम्हारी;
मंज़ूर हैं आँसू भी आँखोमें हमारी,
अगर आजाये मुस्कान होंठपें तुम्हारी।

3409
आज ना जाने क्यों आँखमें आँसू गए,
पैगाम लिखते-लिखते ख्वाब याद गए;
मिलने कि तमन्ना थी आपसे,
लेकिन आँसूमें आप नज़र गए...l

3410
बहुत तमन्ना थी,
तुम्हारा हो जानेकी...
पर क्या पता था,
कि तुम्हें आदत ही नहीं...
किसीको अपना बनानेकी.......

10 October 2018

3401 - 3405 मुहब्बत बेरंग क़दर दाग़ मुस्कुराहट ग़ैर वफ़ा वजह तासीर दर्द आँसू शायरी


3401
ये तो अच्छा हैं कि,
बेरंग हैं आँसू वरना;
किस क़दर दाग़ लिए,
फिरता हमारा चेहरा.......!

3402
आँसू जानते हैं कौन अपना हैं,
तभी तो अपनोंके सामने टपक जाते हैं
मुस्कुराहटका क्या हैं...
वह तो ग़ैरोंसे भी वफ़ा कर लेती हैं...!

3403
मेरी आँखोंमें आँसू नहीं,
बस कुछ नमी हैं...
वजह वो नहीं,
उनकी ये कमी हैं.......!

3404
ये मुहब्बत हैं
ज़रा सोच समझकर रोना
एक आँसू भी जो टूटा
तो सुनाई देगा

3405
तासीर किसी भी दर्दकी,
मीठी नहीं होती;
वजह हीं हैं कि,
आँसू भी नमकीन होते हैं...!

3396 - 3400 वफ़ा इश्क़ प्यार अमृत दवा ज़हर उमर दवा ज़हर जाम तड़प नादान शक्कर शायरी


3396
किसीनें... हमसे कहाँ...
इश्क़... धीमा ज़हर हैं !
हमनें भी... मुस्कुराके कहाँ...
हमें भी जल्दी नहीं हैं.......!

3397
किसीने कहाँ प्यार अमृत हैं,
किसीने कहाँ प्यार ज़हर हैं,
हम तो दोनो समझ कर पी गए,
अगर अमृत हुआ
तो उमरभरको प्यार मिलेगा...
अगर मर गए
तो तड़पतड़पकर जीना हीं पड़ेगा...!

3398
ज़िन्दगी हैं दो दिन
कुछ भी गिला कीजिये
दवा, ज़हर, जाम, इश्क,
जो मिले चख लीजिये...

3399
इस दौरके लोगोमें,
वफ़ा ढूंढ रहे हो...
बडे नादान हो साहिब...
ज़हरकी शीशीमें दवा ढूंढ रहे हो.......!

3400
ज़हर तो ख्वामखाह ही बदनाम हैं,
नज़र घुमाकर देख लो...
इस दुनियामें,
शक्करसे मरने वालोंकी तादाद
...बेशुमार हैं....... !

8 October 2018

3391 - 3395 मोहब्बत प्यार दिल याद उल्फ़त यकीं आँख ख़ुद्दारी वजह अश्क शक इलाज नाराज शायरी


3391
भूल जाना था तो फिर,
अपना बनाया क्यूँ था...
तुमने उल्फ़तका यकीं,
मुझको दिलाया क्यूँ था...?

3392
ख़ुद्दारी वजह हीं कि,
ज़मानेको कभी...
हज़म नहीं हुए हम,
पर ख़ुदकी नज़रोंमें,
यकीं मानो...
कभी कम नहीं हुए हम...!

3393
परखसे परे हैं,
ये शख्शियत मेरी...
मैं उन्हींका हूँ,
जो मुझपें यकीं रखते हैं...!

3394
दिलके हर कोनेमें,
बसाया हैं आपको;
अपनी यादोंमें हरपल,
सजाया हैं आपको; 
यकीं हो तो,
मेरी आँखोंमें देख लीजिये;
अपने अश्कोंमें भी,
छुपाया हैं आपको...!

3395
शकका कोई,
इलाज नहीं होता,
जो यकीं करता हैं,
कभी नाराज नहीं होता,
वो पूछते हैं हमसे...
कितना प्यार करते हो...?
उन्हे क्या पता,
मोहब्बतका हिसाब नहीं होता.......!

7 October 2018

3386 - 3390 जख्म गुनाह हिसाब तकदीर अजीब चीज जज्बात गजल नज्म काबिल लफ्ज़ कलम शायरी


3386
कुछ लोग मेरी कलमसे,
सिते हैं अपने जख्म...
कुछ लोगोंको मैं चुभता हूँ,
एक नोककी तरह.......!

3387
तू मुझसे,
मेरे गुनाहोंका,
हिसाब ना मांग... मेरे खुदा,
मेरी तकदीर लिखनेमें,
कलम तो तेरी ही चली थी.......!
  
3388
कलम भी क्या,
अजीब चीज हैं...
खुदको खाली करके,
किसीके जज्बातोको भरती हैं...!

3389
सुनकर गजल मेरी,
वो अंदाज बदलकर बोले,
कोई छीनो कलम इससे...
ये तो जान ले रही हैं.......

3390
काबिल नहीं इतना,
की आपपर कुछ लफ्ज़ लिखूँ;
जो खुद गजल हो,
उस पर क्या मैं कोई नज्म लिखना.......!

6 October 2018

3381 - 3385 इश्क मोहब्बत दर्द अहसान बयान जुबान वाकिफ़ जज्बात हिदायत दफ्तर कलम शायरी


3381
 मेरी कलम इतनासा
अहसान कर दे...
कह ना पाई जो जुबान
वो बयान कर दे.......!


3382
इस कदर वाकिफ़ हैं,
मेरी कलम, मेरे जज़्बातोंसे;
अगर मैं 'इश्कलिखना भी चाहूँ...
तो तेरा नाम लिखा जाता हैं !!!


3383
कैसे कह दूँ अपनी कलमसे,
कि रोना बंद कर दे...
मोहब्बतकी हैं जनाब,
दर्द फूटफूटकर निकलेंगे...

3384
इश्क़ होना भी लाज़मी हैं,
शायरी लिखनेके लिए...
वरना... कलम ही लिखती,
तो हर दफ्तरका बाबू, ग़ालिब होता.......!

3385
आज फिरसे कलम,
हिदायत दे रहीं हैं दर्द ना लिखनेकी...
लगता ये भी थक गई हैं,
मेरा दर्द छुपाते- छुपाते.......!