10 October 2018

3401 - 3405 मुहब्बत बेरंग क़दर दाग़ मुस्कुराहट ग़ैर वफ़ा वजह तासीर दर्द आँसू शायरी


3401
ये तो अच्छा हैं कि,
बेरंग हैं आँसू वरना;
किस क़दर दाग़ लिए,
फिरता हमारा चेहरा.......!

3402
आँसू जानते हैं कौन अपना हैं,
तभी तो अपनोंके सामने टपक जाते हैं
मुस्कुराहटका क्या हैं...
वह तो ग़ैरोंसे भी वफ़ा कर लेती हैं...!

3403
मेरी आँखोंमें आँसू नहीं,
बस कुछ नमी हैं...
वजह वो नहीं,
उनकी ये कमी हैं.......!

3404
ये मुहब्बत हैं
ज़रा सोच समझकर रोना
एक आँसू भी जो टूटा
तो सुनाई देगा

3405
तासीर किसी भी दर्दकी,
मीठी नहीं होती;
वजह हीं हैं कि,
आँसू भी नमकीन होते हैं...!

No comments:

Post a Comment