3386
कुछ लोग मेरी
कलमसे,
सिते
हैं अपने जख्म...
कुछ लोगोंको मैं चुभता
हूँ,
एक नोककी तरह.......!
3387
तू मुझसे,
मेरे गुनाहोंका,
हिसाब ना मांग... मेरे खुदा,
मेरी तकदीर लिखनेमें,
कलम तो तेरी
ही चली थी.......!
3388
कलम भी क्या,
अजीब चीज हैं...
खुदको खाली
करके,
किसीके जज्बातोको भरती हैं...!
3389
सुनकर गजल
मेरी,
वो अंदाज बदलकर
बोले,
कोई छीनो कलम
इससे...
ये तो जान
ले रही हैं.......
3390
काबिल नहीं इतना,
की आपपर
कुछ लफ्ज़ लिखूँ;
जो खुद गजल
हो,
उस पर क्या
मैं कोई नज्म
लिखना.......!
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