14 October 2018

3421 - 3425 दुनिया कदम विरह महेफिल वक्त बेकरारी बयाँ लब्ज ख्वाइश दर्द फुर्सत शायरी


3421
शायरीकी दुनियामें कदम रखा,
तभी पता चला...
विरहकी महेफिलमें भी,
वाह-वाह बोलते हैं.......!

3422
हर वक्त शायरी नहीं होती, जनाब...
कभी कभी बेकरारी भी बयाँ होती हैं.......!

3423
ये शायरी और कुछ हीं साहब,
अधूरे ख्वाइशेंके मेले हैं;
जिसे हम पा हीं सकते,
उन्हें हम लब्जोमें जी लेते...!

3424
जाने किस हुनरको,
शायरी कहते होंगे लोग...
हम तो वो लिख रहे हैं,
जो कह ना सके उससे...!

3425
अपने दर्दको बयाँ करने हैं,
तो शायरी सीखिये, ज़नाब...
अब लोगोको फुर्सत कहाँ,
एहसासको सुननेकी.......!

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