3421
शायरीकी दुनियामें कदम रखा,
तभी पता चला...
विरहकी महेफिलमें भी,
वाह-वाह बोलते हैं.......!
3422
हर वक्त शायरी
नहीं होती, जनाब...
कभी कभी बेकरारी
भी बयाँ होती
हैं.......!
3423
ये शायरी और कुछ
नहीं साहब,
अधूरे
ख्वाइशेंके मेले
हैं;
जिसे हम पा
नहीं सकते,
उन्हें हम लब्जोमें जी लेते...!
3424
न जाने किस
हुनरको,
शायरी कहते होंगे
लोग...
हम तो वो
लिख रहे हैं,
जो कह ना
सके उससे...!
3425
अपने दर्दको
बयाँ करने हैं,
तो शायरी सीखिये, ज़नाब...
अब लोगोको
फुर्सत कहाँ,
एहसासको सुननेकी.......!
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