29 October 2018

3481 - 3485 मोहब्बत पल निगाहे ज़िक्र फिक्र एहसास ख्याल मौज़ूद सब्र किताब शायरी


3481
मैने पूछा एक पलमें...
जान कैसे निकलती हैं;
उसने चलते चलते...
मेरा हाथ छोड़ दिया.......

3482
निगाहे तो जरा झुका लिजीये जनाब,
मेरे मजहबमें नशा हराम हैं.......!!!

3483
तेरा ज़िक्र... तेरी फिक्र...
तेरा एहसास... तेरा ख्याल...
तू खुदा नहीं...
फिर हर जगह मौज़ूद क्यूँ हैं.......!

3484
यूँ सामने आकर ना बैठो...
सब्र तो सब्र हैं,
हर बार हीं होता.......!

3485
मेरी लिखी किताब...
मेरे ही हाथोमें देकर,
वो कहने लगे...
इसे पढा करो,
मोहब्बत करना सिख जाओगे...!

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