5 October 2018

3376 - 3380 दिल मोहब्बत आरजू बेवफा नसीब गजब खंजर बाँहोमें शायरी


3376
आरजू थी की तेरी,
बाँहोमें दम निकले...
लेकिन बेवफा तुम नहीं,
बदनसीब हम निकले...

3377
ले चल कहीं दूर मुझे,
तेरे सिवा जहाँ कोई ना हो...
बाँहोमें सुला लेना मुझको,
फिर कोई सवेरा ना हो.......

3378
गजबकी चीज होती हैं,
शायरी लिखना...
खुदके खंजरसे,
खुदकी खुदाई लिखना.......!

3379
गजबकी ख़रीददारी,
की उन्होंने हमसे;
वो हमारी बाँहोमें आये,
और हम बिक गए.......!

3380
ना ढूंढ मोहब्बत  बाजारोंमें,
ये कहीं बिकती नहीं;
ये रहती हैं दिलोंमें,
पर बेकदरोंको ये दीखती नहीं...!

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