4 October 2018

3371 - 3375 जिंदगी दर्द सनम शराब नक़ाब गुमराह नज़र सफ़र फासला महफ़िल क़यामत शायरी


3371
दर्द...
कुछ तो कम कर,
मैं तेरा...
रोजका ग्राहक हूँ.......

3372
मत रख बहते पानीमें,
अपने पाँव सनम...
के सारा दरीया,
शराब हो जायेगा.......!

3373
चुपचाप चल रहा था,
जिंदगीके सफ़रमें...
तुमपर नज़र पड़ी और,
मैं गुमराह हो गया.....!!!

3374
अगर देखनी हैं क़यामत तो,
चले आओ हमारी महफ़िलमें...
सुना हैं आज महफ़िलमें,
वो बेनक़ाब आनेवाली हैं.......!

3375
ठुकराया हमने भी,
बहुतोंको हैं... तेरी खातिर,
तुझसे फासला भी शायद...
उनकी बददुआओंका असर हैं...

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