16 October 2018

3431 - 3435 ज़िन्दगी खामोशी सितम याद प्यार जख्म मोहल्लत आदत लफ्ज़ शायरी


3431
हर तरफ खामोशीका साया हैं,
ज़िन्दगीमें प्यार किसने पाया हैं;
हम यादोंमें झूमते हैं उसकी...
और ज़माना कहता हैं,
देखो आज फिर पीकर आया हैं...!

3432
कट रही हैं ज़िन्दगी रोते हुए,
और वो भी तुम्हारे होते हुए...

3433
नमक तुम हाथमें लेकर,
सितमगर सोचते क्या हो...
हजारों जख्म हैं दिलपर,
जहाँ चाहो छिड़क डालो...!

3434
मुझे आदत नही,
हर किसीपर मर मिटनेकी;
जाने क्यों तुझे देखा...
और दिलने सोचनेतक की,
मोहल्लत ना दी.......!

3435
सौ-सौ अहसास छुपे हैं,
मेरे एक-एक लफ्ज़में...
भगवान जाने... 
तुम कितने समझ पाते हो...!

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