3436
पलपल ख़फा
होकर तुम,
खूब जला लो
दिल मेरा...
सोचो ग़र हमने
सीख ली ये अदा,
तो
क्या होगा.......
3437
आरज़ू मेरी, चाहत तेरी,
तमन्ना मेरी, उल्फत तेरी,
इबादत मेरी, मोहब्बत तेरी,
बस तुझसे
तुझ तक हैं दुनिया मेरी...
3438
यादोंमें हमारी
वो भी खोये
होंगे,
खुली आँखोंसे कभी
वो भी सोए
होंगे;
माना हँसना हैं अदा
ग़म छुपानेकी,
पर हँसते-हस्ते कभी
वो भी रोए
होंगे...!
3439
कुछ ख़त निकाल
रखे हैं,
जलानेको,
कागज़ तो धुआँ
हो जायेगे...
पर
कहानीका क्या.......?
3440
कुछ ख़त आज
भी,
डाकघर से
लौट आते हैं...
डाकिया बोलता हैं,
जज्बातोंका कोई पता
नहीं होता...!
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