17 October 2018

3436 - 3440 पल आँख ख़फा अदा आरज़ू चाहत तमन्ना मेरी उल्फत इबादत मोहब्बत मुकम्मल शायरी


3436
पलपल ख़फा होकर तुम,
खूब जला लो दिल मेरा...
सोचो ग़र हमने सीख ली ये अदा,
तो क्या होगा.......

3437
आरज़ू मेरी, चाहत तेरी,
तमन्ना मेरी, उल्फत तेरी,
इबादत मेरी, मोहब्बत तेरी,
बस तुझसे तुझ तक हैं दुनिया मेरी...

3438
यादोंमें हमारी वो भी खोये होंगे,
खुली आँखोंसे कभी वो भी सोए होंगे;
माना हँसना हैं अदा ग़म छुपानेकी,
पर हँसते-हस्ते कभी वो भी रोए होंगे...!

3439
कुछ ख़त निकाल रखे हैं,
जलानेको,
कागज़ तो धुआँ हो जायेगे...
पर कहानीका क्या.......?

3440
कुछ ख़त आज भी,
डाकघर से लौट आते हैं...
डाकिया बोलता हैं,
जज्बातोंका कोई पता नहीं होता...!

No comments:

Post a Comment