14 October 2018

3416 - 3420 जिंदगी कहानी फूल करीब ख्वाहिश नसीब याँद सपने निशान वक़्त बरसात शायरी


3416
यूँही उम्रके साथ,
बढ़ रही थी अधूरी कहानी;
साँसोंमें तुम समा गयी,
और जिंदगीका पता चला...

3417
एक फूल अजीब था,
कभी हमारे भी बहुत करीब था
जब हम चाहने लगे उसे,
तो पता चला...
कि वो किसी दूसरेका नसीब था

3418
"कोई खास फर्क नहीं पडता,
अब ख्वाहिशें अधूरी रहनेपर;
बहुत करीबसे कुछ सपनोंको,
टूटते हुए देखा हैं मैने.......!"

3419
खतरेके निशानके,
बहुत करीब बह रहा हैं...
उम्रका पानी ।
और, वक़्तकी बरसात हैं कि
थमनेका नाम ही नहीं ले हीं ।।

3420
याँदोंके स्पर्श बडे़,
अजीब होते हैं...!
कोई भी ना हो पास,
फिर भी ये बहुत करीब होते हैं.......!!!

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