3416
यूँही उम्रके
साथ,
बढ़ रही थी
अधूरी कहानी;
साँसोंमें तुम
समा गयी,
और जिंदगीका पता
चला...
3417
एक फूल अजीब
था,
कभी हमारे
भी बहुत करीब
था
जब हम चाहने
लगे उसे,
तो
पता चला...
कि वो
किसी दूसरेका
नसीब था ।
3418
"कोई
खास फर्क नहीं
पडता,
अब ख्वाहिशें
अधूरी रहनेपर;
बहुत करीबसे
कुछ सपनोंको,
टूटते हुए देखा
हैं मैने.......!"
3419
खतरेके निशानके,
बहुत करीब बह
रहा हैं...
उम्रका पानी ।
और, वक़्तकी
बरसात हैं कि
थमनेका नाम
ही नहीं ले
रहीं ।।
3420
याँदोंके स्पर्श
बडे़,
अजीब होते हैं...!
कोई भी ना
हो पास,
फिर भी ये बहुत करीब होते हैं.......!!!
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