3471
रौनकें कहाँ दिखाई देती हैं,
अब पहले जैसी गालिब ।
अख़बारोंके इश्तेहार बताते हैं,
कोई त्यौहार आया हैं...।।
3472
नज़रिया बदलके देख,
हर तरफ नज़राने मिलेंगे;
ऐ ज़िन्दगी यहाँ तेरी तकलीफोंके भी,
दीवाने मिलेंगे.......!
3473
एक रास्ता ये भी हैं,
मंजिलोंको पानेका...
कि सीख लो तुम भी हुनर,
हाँ में हाँ मिलानेका.......!
3474
पता नहीं वो कैसे लोग थे,
जिंदगीभर अजनबी ही रहे...
पर मिलते हर रोज थे.......!
3475
क्या खूब होता अगर,
यादें रेत होती...
मुठ्ठीसे गिरा देते,
पाँवसे उड़ा देते...
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