4816
एक सिलसिलेकी उमीद
थी जिनसे,
वही फ़ासले बनाते गये...
हम तो पास
आनेकी कोशिशमें थे,
जाने क्यूँ वो दूरियाँ
बढ़ाते गये...
4817
तुम्हे कहाँ फुरसत
थी,
मेरे पास
आनेकी फराज...
हमने तो बहुत
इत्तला की,
अपने
गुज़र जानेकी...
4818
जिन्हे आना हैं वो खुद,
लौट
आयेंगे तेरे पास...
बुलाने पर तो
परिंदे भी,
गुरुर
करते हैं अपनी
उड़ान पर...!
4719
वो भी क्या
दिन थे,
जब घड़ी एकादके पास होती
थी...
और समय सबके पास.......!
4820
रेलमें खिड़कीके पास बैठके,
हर दफ़ा
महसूस हुआ हैं...
जो जितना ज्यादा क़रीब हैं,
वो तेजीसे दूर जा
रहा हैं.......