30 September 2019

4801 - 4805 इश्क़ ख़्वाहिश ज़िंदगी मोहब्बत गुनाह ख्याल सफ़र बेहिसाब शायरी


4801
गुनाहे इश्क़में,
इक वो दौर भी बहुत खास रहा...
मेरा ना होकर भी,
तू मेरे बहुत पास रहा...!

4802
लिखनेको तो हम, 
आधा इश्क़ लिख दे...
क्यों कि,
तुम बिन पूरा संभव ही नहीं हैं...

4803
किसीके इश्क़का,
ख्याल थे हम भी...
बड़े दिनोंतक बहुत,
अमीर थे हम भी...!

4804
तलब कहूँ,
ख़्वाहिश कहूँ, 
या कहूँ इश्क़...
तुम्हें जो भी हैं,
‘तुमसे तुम’ तक का,
ये सफ़र ज़िंदगी है मेरी...!

4805
पहले इश्क़को आग होने दीजिए...
फिर दिलको राख होने दीजिए...
तब जाकर पकेगी बेपनाह मोहब्बत...
जो भी हो रहा हैं बेहिसाब होने दीजिए...
सजाएं मुकर्रर करना इत्मिनानसे...
मगर पहले कोई गुनाह तो होने दीजिए...!

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