4761
"इश्क़"
वो नीमकी
डाली हैं,
जिसका नया पत्ता
ही,
"मीठा"
लगता हैं...
4762
अलग ही होता
हैं,
'इश्क़'
का हिसाब...
जहां "तुम और मैं
दो नहीं",
"एक" होते हैं.......!
4763
जो जीनेकी
वजह हैं,
तेरा
इश्क़...!
जो जीने नहीं
देता,
वो भी हैं तेरा इश्क़...!!!
4764
चंद लफ़्ज़ोंकी तक़ल्लुफ़में,
ये इश्क़
रुक गया...
वो इक़रारपे रुके
रहे,
और मैं
इंतज़ारपे रुक
गया...!
4765
जो दूरियोंमें भी
कायम रहा,
वो इश्क़ ही कुछ
और था...!
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