29 September 2019

4796 - 4800 इश्क़ पनाह लब आँख नज़रें नशा नजरअंदाज सजा शायरी


4796
इश्क़के चाँदको,
अपनी पनाहमें रहने दो... 
आज लबोंको ना खोलो,
बस आँखोंको कहने दो...!

4797
नज़रें बचाके सबसे,
जब जब आप सँवरने लगे...!
आईना भी जान गया,
आप भी इश्क़ करने लगे...!!!

4798
इश्क़से नशीला,
कोई नशा नहीं है जनाब... 
घूँट-घूँट-पीते हैं और,
कतरा कतरा मरते हैं.......

4799
सुनो ना.......
तन्हा क्या इश्क़ करोगे...?
आओ,
थोड़ा थोड़ा मिलकर कर लेते हैं...!

4800
ये तेरी हल्की सी नजरअंदाजी,
और थोड़ासा इश्क़...
ये तो बता,
ये मजा--इश्क़ है या सजा--इश्क़...

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