4776
इश्क़ और मेरी,
बनती नहीं साहब...
वो ग़ुलामी चाहता हैं और,
हम बचपनसे आज़ाद हैं...!
4777
देखते हैं अब,
क्या मुकाम आता हैं साहब...
सूखे पत्तेको इश्क़
हुआ हैं,
बहती
हवासे.......
4778
आजान-ऐ-इश्क़
देती हैं,
तेरे रूखसारकी मस्जिद...!
गर हो इजाजत
तो तेरे लबोंपर,
मोहब्बतका सजदा कर
लुँ...!!!
4779
ये अलग बात हैं कि,
वो मुझे हासिल नहीं हैं...
मगर उसके सिवाय कोई
मेरे,
इश्क़के काबिल नहीं हैं...!
4780
ऐ इश्क़ तू मुझे
जरा,
एक बात तो
बता...
तू सबको आजमाता
हैं,
या तेरी सिर्फ
मुझसे दुश्मनी हैं...?
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