9 September 2019

4706 - 4710 ज़िन्दगी मोहब्बत हसीन बेवजह इल्जाम शायरी


4706
हर बार हमपर इल्जाम,
लगा देते हो मोहब्बतका...
कभी खुदसे भी पुछा हैं की,
तुम इतने हसीन क्यों हो...!

4707
कोई इल्जाम रह गया हो,
तो वो भी दे दो...
पहले भी हम बुरे थे,
अब थोड़े और सही.......

4708
छोड दो खुदको,
सही साबित करनेको, जनाब...
ज़िन्दगी हैं,
कोई इल्जाम नही...!

4709
इल्जाम लगाने वाले लोग,
मुझे बहुत पसंद आते हैं l
क्योंकि यही तो वह लोग हैं,
जो मेरे अंदरकी कमी बताते हैं ll

4710
बेवजह सरहदोंपर,
इल्जाम है बंटवारेका...
लोग मुद्दतोंसे एक घरमें भी,
अलग अलग रहते हैं.......

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