18 September 2019

4741 - 4745 ख्वाहिश उम्र फर्ज ख़्वाब कैद आसमान मेहबूब जमानत अरमान शायरी


4741
हजारो ख्वाहिशें ऐसी की,
हर ख्वाहिशपे दम निकले...
बहुत निकले मेरे अरमान,
लेकिन फिर भी कम निकले...!

4742
उम्र गुजर रही हैं,
तराजूके काँटेको संभालनेमें;
कभी फर्ज भारी होते हैं,
तो कभी अरमान.......!

4743
कल यहाँ ख़्वाबोंकी,
फसलें देखना तुम...
आज कुछ अरमान,
अपने बो रहा हूँ...!

4744
करो कैद किसी परिंदेको,
कभी पिंजरेमें।
उसके भी अरमान हैं,
उड़ने दो उसे खुले आसमानमें।।

4745
मेरे मेहबूबके ह्रदयमें,
मुझे उम्रकैद मिले...
थक जायें सारे वकील,
फिर भी जमानत ना मिले...!

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