4741
हजारो ख्वाहिशें ऐसी की,
हर ख्वाहिशपे
दम निकले...
बहुत निकले मेरे अरमान,
लेकिन फिर भी
कम निकले...!
4742
उम्र गुजर रही
हैं,
तराजूके
काँटेको संभालनेमें;
कभी फर्ज भारी
होते हैं,
तो
कभी अरमान.......!
4743
कल यहाँ ख़्वाबोंकी,
फसलें देखना
तुम...
आज कुछ अरमान,
अपने बो रहा
हूँ...!
4744
न करो कैद
किसी परिंदेको,
कभी पिंजरेमें।
उसके भी अरमान हैं,
उड़ने दो
उसे खुले आसमानमें।।
4745
मेरे
मेहबूबके ह्रदयमें,
मुझे उम्रकैद मिले...
थक जायें सारे वकील,
फिर भी जमानत
ना मिले...!
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