24 September 2019

4771 - 4775 मोहब्बत उम्र कमाल बाज़ी डर जीत इंतज़ार नासमझी खिलोना इश्क़ शायरी


4771
कच्ची उम्रके उफानोमें,
जो बहे जाए वो इश्क़ क्या...
जुर्रियोंमें भी खिलखिलाए,
वो इश्क़ कमाल होता हैं...!

4772
हिलाकर रख देता हैं,
इंसानकी बुनियाद;
कम्बख्त़ इश्क़ भी किसी,
ज़ल ज़लेसे कम नहीं...!

4773
गर बाज़ी इश्क़की बाज़ी हैं,
जो चाहो लगा दो, डर कैसा...
गर जीत गए तो क्या कहना,
हारे भी तो बाज़ी मात नहीं...

4774
मोहब्बत.......
सब्रके अलावा कुछ हीं,
मैने हर इश्क़को,
इंतज़ार करते देखा हैं...!

4775
इश्क़की नासमझीमें,
सब कुछ गवा बैठा...
उसे खिलोनोकी जरूरत थी,
मैं अपना दिल उसे दे बैठा...

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