7771
सामने मंज़िल थी,
और पीछे उसक़ा वज़ूद...
क़्या क़रते हम भी यारों,
रुक़ते तो सफ़र रह ज़ाता,
चलते तो हमसफ़र रह ज़ाता...
रुक़ते तो सफ़र रह ज़ाता,
चलते तो हमसफ़र रह ज़ाता...
7772मौज़ूदगी दिखा गया,ग़हन अंधेरेमें दिया अपनी...!अमावसक़ी चादरमें भी,बयाँ क़र ग़या अपना वज़ूद...!!!
7773
तेरे वज़ूदसे हैं,
मेरी मुक़म्मल क़हानी l
मैं ख़ोख़ली सीप,
और तू मोती रूहानी ll
7774वज़ूद मेरा भी एक़ दिन तो,मशहूर होगा...!क़भी-ना-क़भी मेरे हाथों,क़ोई तो क़ुसूर होगा.......
7775
मैं एक़ क़तरा हूँ,
मेरा अलग़ वज़ूद तो हैं...!
हुआ क़रे जो समन्दर,
मेरी तलाशमें हैं.......!!!