16 December 2017

2076 - 2080 बेवफा इम्तेहा नज़रे नादान रोना आँसू जान ग़ज़ल किताब आसमां समझ ज़माना शायरी


2076
वो बेवफा हमारा इम्तेहा क्या लेगी...
मिलेगी नज़रोंसे नज़रे तो अपनी नज़रे ज़ुका लेगी...
उसे मेरी कबरपर दीया मत जलाने देना...
वो नादान हैं यारों... अपना हाथ जला लेगी...

2077
सोचा ही नहीं था मैंने कि,
ऐसे भी ज़माने होंगे,
रोना भी ज़रूरी होगा और,
आँसू भी छुपाने होंगे . . .

2078
"जान"
थी वह मेरी
और "जान" तो
एक दिन चली ही जाती हैं...

2079
अर्ज किया हैं,
हवा चुरा ले गयी थी
मेरी ग़ज़लोंकी किताब l
देखो, आसमां पढ़के रो रहा हैं,
और
नासमझ ज़माना खुश हैं कि
बारिश हो रही हैं...!

2080
वो कहता हैं की,
बता तेरा दर्द कैसे समझू,
मैंने कहां...
की इश्क़ कर और करके हार जा !

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