25 December 2017

2116 - 2120 दिल मुहब्बत महक चाहत इन्तहा महफ़िल दर्द ग़म ताबीज सच याद मुमकिन बेवफा अफसोस समझ शायरी


2116
रंगत लाई हैं,
शायरोंकी महफ़िल.....
दर्द भी कितना,
महकता हैं यहाँ...!!

2117
मैने गलेमें सारे "ताबीज"
डालके देखें हैं...
पर जो उनकी "यादों" को रोक सके
वो "धागा" मिला ही नहीं............

2118
भुलाया उनको जाता हैं,
जो दिमागमें बसते हैं l
दिलमें बसने वालोंको,
भूलना नामुमकिन हैं..!!

2119
ग़म नहीं की वो,
बेवफा निकले l
अफसोस हैं कि,
लोग सच निकले !!!

2120
अगर समझ पाते तुम,
मेरी चाहतकी इन्तहा...
तो हम तुमसे नहीं,
तुम हमसे मुहब्बत करते...

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