26 December 2017

2121 - 2125 दुनियाँ मोहब्बत हमसफर नसीब इल्ज़ाम दीवार तस्वीर खत्म आँसू हार जीत जागीर समझ तलाश शायरी


2121
किस मुँहसे इल्ज़ाम लगाएं,
बारिशकी बूँदोंपर,
हमने ख़ुद तस्वीर बनाई थी,
मिट्टीकी दीवारोंपर !

2122
सब कुछ लुटा दिया,
उनकी मोहब्बतमें...
कमबख्त आँसू ही ऐसे हैं,
जो खत्म नहीं होते.......

2123
हमसे खेलती रही दुनियाँ,
ताशके पत्तोकी तरह,
जिसने जीता उसने भी फेका...
जिसने हारा उसने भी फेका...

2124
छत कहा थी नसीबमें,
फुटपाथको जागीर समझ बैठे...
गीले चावलमें शक्कर क्या गिरी,
बच्चे खीर समझ बैठे. . . . . . .

2125
तलाशमें बीत गए,
न जाने कितने साल... साहेब,
अब समझे... खुदसे बड़ा,
कोई हमसफर नहीं होता...!

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