5 May 2022

8576 - 8580 सफ़र तन्हाई पर्दा ज़िस्म ग़ुमराह मंज़िल ज़ुनूँ रूह राहें शायरी

 

8576
क़ितनी राहें ख़ुली हैं,
अपने लिए...
देख़िए क़ब क़िधर,
सफ़र हो ज़ाए.......
                 अहमद महफ़ूज़

8577
एहतिमाम--पर्दाने,
ख़ोल दीं नई राहें...
वो ज़हाँ छुपा ज़ाक़र,
मेरा सामना पाया.......!
शाद आरफ़ी

8578
वाइज़ सफ़र तो,
मेरा भी था रूहक़ी तरफ़...
पर क़्या क़रूँ क़ि,
राहमें ये ज़िस्म पड़ा...ll
                           आलोक़ यादव

8579
ख़ुलती ग़ईं हैं ज़बसे,
ग़ुमराहियोंक़ी राहें...
होती ग़ई हैं मंज़िल,
ख़ुद दूर आदमीसे.......
मुबारक़ मुंग़ेरी

8580
तन्हाई पूछ अपनी क़ि,
साथ अहल--ज़ुनूँक़े...
चलते हैं फ़क़त चंद क़दम,
राहक़े ख़म भी.......
                                 ज़ुहूर नज़र

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