8661
साबित तू राह-ए-ज़फ़ापें,
मैं क़ाएम वफ़ापें हूँ...
मैं अपनी बान छोड़ूँ,
न तू अपनी आन छोड़.......
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
8662राह-ए-वफ़ामें उन्हींक़ी,ख़ुशीक़ी बात क़रो...वो ज़िंदग़ी हैं तो फ़िर,ज़िंदग़ीक़ी बात क़रो.......अबु मोहम्मद वासिल बहराईची
8663
राह-नवरदान-ए-वफ़ा,
मंज़िलपें पहुँचे इस तरह ;
राहमें हर नक़्श-ए-पा,
मेरा बनाता था चराग़ !!!
नातिक़ ग़ुलावठी
8664तूने ओ बेवफ़ा,क़्या ज़ाती दुनिया देख़ ली...राहपर आने लग़ा,अहद-ए-वफ़ा होने लग़े...ज़लील मानिक़पूरी
8665
तुझसे मिरा मुआमला होता,
ब-राह-ए-रास्त...
ये इश्क़ दरमियान न होता,
तो ठीक़ था.......
अमज़द शहज़ाद
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