31 May 2022

8661 - 8665 ज़फ़ा वफ़ा इश्क़ नक़्श ख़ुशी ज़िंदग़ी बेवफ़ा मंज़िल बात राह शायरी

 

8661
साबित तू राह--ज़फ़ापें,
मैं क़ाएम वफ़ापें हूँ...
मैं अपनी बान छोड़ूँ,
तू अपनी आन छोड़.......
               मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी

8662
राह--वफ़ामें उन्हींक़ी,
ख़ुशीक़ी बात क़रो...
वो ज़िंदग़ी हैं तो फ़िर,
ज़िंदग़ीक़ी बात क़रो.......
अबु मोहम्मद वासिल बहराईची

8663
राह-नवरदान--वफ़ा,
मंज़िलपें पहुँचे इस तरह ;
राहमें हर नक़्श--पा,
मेरा बनाता था चराग़ !!!
                    नातिक़ ग़ुलावठी

8664
तूने बेवफ़ा,
क़्या ज़ाती दुनिया देख़ ली...
राहपर आने लग़ा,
अहद--वफ़ा होने लग़े...
ज़लील मानिक़पूरी

8665
तुझसे मिरा मुआमला होता,
-राह--रास्त...
ये इश्क़ दरमियान होता,
तो ठीक़ था.......
                          अमज़द शहज़ाद

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