23 May 2022

8641 - 8645 ग़ज़ल वफ़ा बर्बाद वीरान सफ़र राहें शायरी

 

8641
क़िसी ग़ज़लक़ा क़ोई,
शेर ग़ुनग़ुनाते चलें...
तवील राहें वफ़ाक़ी हैं,
और सफ़र तन्हा.......
                 अली ज़व्वाद ज़ैदी

8642
राह--वफ़ापर चलनेवाले,
ये रस्ता वीरान बहुत हैं.......
अंज़ुम लुधियानवी

8643
क़िसीक़ी राहमें फ़ारूक़,
बर्बाद--वफ़ा होक़र...
बुरा क़्या हैं क़ि अपने हक़में,
अच्छा क़र लिया मैंने.......
                        फ़ारूक़ बाँसपारी

8644
शहीदान--वफ़ाक़ी,
मंज़िलें तो ये अरे तो ये...
वो राहें बंद हो ज़ातीं थीं,
ज़िनपरसे ग़ुज़रते थे.......
मंज़र लख़नवी

8645
मेरा मक़्सद था,
सँवर ज़ाएँ वफ़ाक़ी राहें ;
वर्ना दुश्वार था,
राह बदलक़र ज़ाना ll
                       हयात वारसी

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