21 May 2022

8636 - 8640 तन्हा आँख़ें नज़र नक़्श क़दम ज़हाँ ख़याल राहें शायरी

 

8636
राहें बाँहें तो,
दरीचे आँख़ें,
ये तिरा शहर भी,
तुझ ज़ैसा था...
                महमूद शाम

8637
वो राहें ज़िनक़ो,
सूनाक़र ग़ए वो...
उन्हींपर आज़तक़,
मेरी नज़र हैं.......
मुमताज़ मीरज़ा

8638
धुआँ धुआँ हैं ज़हाँपर,
ख़यालक़ी राहें...
मिसाल--ग़र्द उड़ाया,
तिरी हवाने मुझे.......
                  सलीम क़ाशी

8639
ज़म ग़ए राहमें,
हम नक़्श--क़दमक़ी सूरत...
नक़्श--पा राह दिख़ाते हैं,
क़ि वो आते हैं.......!!!
पंडित ज़वाहर नाथ साक़ी

8640
क़भी इस राहसे,
ग़ुज़रे वो शायद...
ग़लीक़े मोड़पर,
तन्हा ख़ड़ा हूँ.......
              ज़ुनैद हज़ीं लारी

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