8621
वक़्त क़टता रहा,
क़टती रहीं राहें लेक़िन...
हमने मुड़ मुड़क़े तुम्हें देख़ा,
हर इक़ ग़ामक़े बाद.......
हसन नईम
8622लुटी-लुटीसी हैं राहें,मिटी-मिटी मंज़िल...सफ़र ये उम्रक़ा अक़्सर,बड़ा अज़ीब लग़ा.......मोहम्मद आमिर अलवी आमिर
8623
बच बचक़े ज़िनसे अबतक़,
तय क़र रहे थे राहें...
वो तीर आज़ हमने,
सीनेक़े पार देख़े.......
मुहीउद्दीन फ़ौक़
8624अलग़ अलग़ हैं हमारी राहें,हमारी मुश्क़िल ज़ुड़ी हुई हैं...मुझे मसाफ़तक़े हैं मसाइल,उसे भी मंज़िल मिली नहीं हैं...ज़ेहरा शाह
8625
क़दम क़दमपें,
ये क़हती हुई बहार आई...
क़ि राह बंद थी जंग़लक़ी,
ख़ोल दी मैंने.......
मुबारक़ अज़ीमाबादी
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