16 May 2022

8616 - 8620 सनम क़ैद पत्थर पाग़ल ठोक़र मुलाक़ात बात राहें शायरी

 

8616
मक़्तलमें क़ैसे,
छोड़क़े राहें बदल ग़या...
यारब क़िसी सनमक़ो,
ऐसी ख़ुदाई दे.......
                    नज़मा शाहीन ख़ोसा

8617
हैरत हैं उसने,
क़ैद भी ख़ुद ही क़िया मुझे...!
फ़िर ख़ुद मिरे फ़रारक़ी,
राहें निक़ाल दीं.......
फख़्र अब्बास

8618
तेरी राहें तक़ते तक़ते,
हो ग़ए पत्थर हम ;
अब तो इसक़ो,
हाथ लग़ा दे पत्थर पाग़ल हैं ll
                              अंक़ित मौर्या

8619
राहमें बैठा हूँ मैं,
तुम संग़--रह समझो मुझे...
आदमी बन ज़ाऊँग़ा,
क़ुछ ठोक़रें ख़ानेक़े बाद.......
बेख़ुद देहलवी

8620
राहपर उनक़ो लग़ा,
लाए तो हैं बातोंमें...
और ख़ुल ज़ाएँग़े,
दो चार मुलाक़ातोंमें...!
                          दाग़ देहलवी

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