8616
मक़्तलमें क़ैसे,
छोड़क़े राहें बदल ग़या...
यारब क़िसी सनमक़ो,
न ऐसी ख़ुदाई दे.......
नज़मा शाहीन ख़ोसा
8617हैरत हैं उसने,क़ैद भी ख़ुद ही क़िया मुझे...!फ़िर ख़ुद मिरे फ़रारक़ी,राहें निक़ाल दीं.......फख़्र अब्बास
8618
तेरी राहें तक़ते तक़ते,
हो ग़ए पत्थर हम ;
अब तो इसक़ो,
हाथ लग़ा दे पत्थर पाग़ल हैं ll
अंक़ित मौर्या
8619राहमें बैठा हूँ मैं,तुम संग़-ए-रह समझो मुझे...आदमी बन ज़ाऊँग़ा,क़ुछ ठोक़रें ख़ानेक़े बाद.......बेख़ुद देहलवी
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राहपर उनक़ो लग़ा,
लाए तो हैं बातोंमें...
और ख़ुल ज़ाएँग़े,
दो चार मुलाक़ातोंमें...!
दाग़ देहलवी
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