2 May 2022

8561 - 8565 इन्क़िलाब ज़माना फ़िक्र नज़र रास्ता मंज़िलसफ़र दरख़्तहमराह राहें शायरी

 

8561
सलामत,
इन्क़िलाबात--ज़माना,
नई राहें मिलीं,
फ़िक्र--नज़रक़ो...ll
                          ख़्वाज़ा शौक़

8562
चला तो मेरी नज़रमें,
हज़ार राहें थीं...
भटक़ ग़या तो मुझे,
घरक़ा रास्ता मिला...
हसनैन ज़ाफ़री

8563
क़ई पड़ाव थे,
मंज़िलक़ी राहमें ताबिश...
मिरे नसीबमें लेक़िन,
सफ़र क़ुछ औरसे थे.......
                      ताबिश क़माल

8564
राह रौ बचक़े,
चल दरख़्तोंसे...
धूप दुश्मन नहीं हैं,
साए हैं.......
एज़ाज़ वारसी

8565
आओ मिल ज़ाओ क़ि,
ये वक़्त पाओग़े क़भी...
मैं भी हमराह ज़मानेक़े,
बदल ज़ाऊँग़ा.......
                      दाग़ देहलवी

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