ज़ाग़ उट्ठी हैं,
ज़िंदग़ीक़ी राहें...
शायद क़ोई,
चाँदक़ो ग़या हैं...!
क़य्यूम नज़र
8612तय क़र रहा हूँ मैं भी,ये राहें सलीबक़ी...आवाज़-ए-हयात,न देना अभी मुझे.......अली अहमद ज़लीली
8613
अबक़े अज़ब सफ़रपें,
निक़लना पड़ा मुझे...
राहें क़िसीक़े नाम थीं,
चलना पड़ा मुझे.......
सय्यद ताबिश अलवरी
8614अज़नबी राहें न ज़ाने,क़िस तरह आवाज़ दें...ज़ब सफ़रपर चल पड़े थे,क़िस लिए सोचा न था.......बिमल कृष्ण अश्क़
8615
मिलने वालेसे,
राह पैदा क़र...
उससे मिलनेक़ी,
और सूरत क़्या.......
आसी ग़ाज़ीपुरी
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