8 May 2022

8591 - 8595 इश्क़ उम्मीद क़दम हादसा ज़िंदग़ी राह शायरी

 

8591
ज़ो राह अहल--ख़िरदक़े लिए,
हैं ला-महदूद...
ज़ुनून--इश्क़में,
वो चंद ग़ाम होती हैं.......
                              रविश सिद्दीक़ी

8592
अब तो इस राहसे,
वो शख़्स ग़ुज़रता भी नहीं l
अब क़िस उम्मीदपें,
दरवाज़ेसे झाँक़े क़ोई ll
परवीन शाक़िर

8593
तुम अभी शहरमें,
क़्या नए आए हो...?
रुक़ ग़ए राहमें,
हादसा देख़क़र.......!
                    बशीर बद्र

8594
ज़िंदग़ीक़ी राहें अब,
पुर-ख़तर हैं इस दर्ज़ा दर्ज़ा...
आप चल नहीं सक़ते,
दो क़दम यहाँ तन्हा.......!
नसीर क़ोटी

8595
ऊँची नीची तिरछी टेढ़ी,
सब राहें ज़ो देख़ चुक़ा...
क़ौन आक़र समझाएग़ा अब,
इस दीवानेक़ो.......
                           बूटा ख़ान राज़स

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