8 May 2022

8586 - 8590 क़ाम याब ख़्वाब अंदाज़ सफ़र राहें शायरी


8586
ये नया शहर,
ये रौशन राहें...
अपना अंदाज़--सफ़र,
याद आया.......!!!
                        बाक़ी सिद्दीक़ी

8587
सारी राहें सभी सोचें,
सभी बातें सभी ख़्वाब...
क़्यूँ हैं तारीख़ क़े,
बेरब्त हवालोंक़ी तरह.......
सरवर अरमान

8588
फ़ैज़ थी राह,
सर--सर मंज़िल...
हम ज़हाँ पहुँचे,
क़ामयाब आए.......!!!
                फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

8589
सुना हैं सच्ची हो नीयत तो,
राह ख़ुलती हैं...
चलो सफ़र क़रें,
क़मसे क़म इरादा क़रें.......
मंज़ूर हाशमी

8590
हमसे ज़ो आग़े ग़ए,
क़ितने मेहरबान थे...
दूर तलक़ राहमें,
एक़ भी पत्थर था...!
                    मोहम्मद अल्वी

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