ये नया शहर,
ये रौशन राहें...
अपना अंदाज़-ए-सफ़र,
याद आया.......!!!
बाक़ी सिद्दीक़ी
8587सारी राहें सभी सोचें,सभी बातें सभी ख़्वाब...क़्यूँ हैं तारीख़ क़े,बेरब्त हवालोंक़ी तरह.......सरवर अरमान
8588
फ़ैज़ थी राह,
सर-ब-सर मंज़िल...
हम ज़हाँ पहुँचे,
क़ामयाब आए.......!!!
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
8589सुना हैं सच्ची हो नीयत तो,राह ख़ुलती हैं...चलो सफ़र न क़रें,क़मसे क़म इरादा क़रें.......मंज़ूर हाशमी
8590
हमसे ज़ो आग़े ग़ए,
क़ितने मेहरबान थे...
दूर तलक़ राहमें,
एक़ भी पत्थर न था...!
मोहम्मद अल्वी
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