8601
हैं इश्क़क़ी राहें पेंचीदा,
मंज़िलपें पहुँचना सहल नहीं...
राहमें अग़र दिल बैठ ग़या,
फ़िर उसक़ा सँभलना मुश्क़िल हैं...
आज़िज़ मातवी
8602वफ़ाक़ी राहमें,दिलक़ा सिपास रख़ दूँग़ा...मैं हर नदीक़े क़िनारेपें,प्यास रख़ दूँग़ा.......नाशिर नक़वी
8603
ये वफ़ाक़ी सख़्त राहें,
ये तुम्हारे पाँव नाज़ुक़...
न लो इंतिक़ाम मुझसे,
मिरे साथ साथ चलक़े...
खुमार बाराबंकवी
8604हुस्न इक़ दरिया हैं,सहरा भी हैं उसक़ी राहमें...क़ल क़हाँ होग़ा ये दरिया,ये भी तो सोचो ज़रा.......!अब्दुल हफ़ीज़ नईमी
8605
तू मिरी राहमें,
क़्यूँ हाइल हैं...
एक़ उमडे हुए,
दरियाक़ी तरह...
ज़मील यूसुफ़
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