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दामनको ज़रा,
झटक तो देखो…
दुनिया हैं कुछ,
और शय नहीं हैं…
अहमद महफ़ूज़
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जो बात हिज्रकी आती तो,
अपने दामनसे;
वो आँसू पोंछता जाता था…
और मैं रोता था…….
नज़ीर अकबराबादी
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अपने दामनकी,
कुछ ख़बर हैं मजीद…
सोचकर ख़ुदको,
पारसा कहिए…….
अब्दुल मजीद ख़ाँ मजीद
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सुनेगा कौन मेरी,
चाकदामानीके अफसाने…
यहाँ सब अपने अपने,
पैरहनकी बातें करते हैं…….
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ऐ ख़ुदा, मेरे यारका,
दामन ख़ुशियोंसे सजा दे…
उसके जन्मदिनपर,
उसीकी कोई रज़ा दे…….