5331
कुछ कर गुजरनेकी चाहमें,
कहाँ-कहाँ से
गुजरे...
अकेलेही
नजर आये हम,
जहाँ-जहाँसे
गुजरे.......
5332
एक उम्र गुस्ताखियोंके,
लिये भी नसीब
हो;
ये ज़िंदगी तो बस,
अदबमें ही गुजर
गई...
5333
छाया हैं नशा,
उनकी यादोंका...
ए रात जरा,
थमके गुजर...!
5334
एक नफ़रत हैं,
जो लोग पलमें
समझ जाते हैं;
और एक मौहब्बत
हैं,
जिसको समझनेमें बरसों गुजर
जाते हैं...
5335
बड़े अजीब अकेलेपनसे
गुजरते हैं,
ये खण्डहर भी.......
देखने तो बहुत
आते हैं,
रहता कोई नही.......!