5286
उम्र छोटी हैं,
तो क्या...
ज़िंदगीका हर एक
मंज़र देखा हैं;
फरेबी मुस्कुराहटें देखी हैं,
बगलमें खंजर देखा
हैं.......
5287
तज़ुर्बे
ना पूछो ज़िंदगीके,
उम्र शर्मिंदा हो जाएगी...
5288
कभी कभी धागे
बड़े कमज़ोर,
चुन लेते हैं
हम...
और फिर पूरी
उम्र गाँठ बाँधनेमें
ही,
निकल जाती हैं.......
5289
एक उम्रसे तराश रहा
हूँ ख़ुदको,
कि हो जाऊं
लोगोंके मुताबिक़;
पर हर रोज़
ये ज़माना मुझमें,
एक नया ऐब
निकाल लेता हैं...
5290
सिखा न सकी,
जो उम्र भर
तमाम किताबें;
करीबसे कुछ चहरे
पढे और,
न जाने कितने
सबक सिख लिए...!
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