17 January 2020

5336 - 5340 मुस्कुरा इरादा लम्हा हाल मुलाकात उलझन सफर दर्द अकेले शायरी


5336
मुस्कुरानेकी आदतभी,
कितनी महंगी पड़ी हमको;
उसने छोड़ दिया ये कहकर कि,
तुम तो अकेलेभी खुश रह लेते हो...

5337
इरादा था,
जी लेंगे तुझसे बिछड़कर...
और यहाँ ये हाल हैं कि,
गुज़रता नही इक लम्हा अकेले...

5368
उनसे मुलाकात होनेसे पहले हम अकेले थे;
आज उनके पास होकरभी अकेले हैं;
तमाम उलझनोंमें रहते हैं,
कौन कहता हैं हम अकेले हैं.......!

5339
अकेले ही तय करने पडते हैं,
कुछ सफर...
हर सफरपर,
हमसफर नही होते.......

5340
सोचा था दर्दकी विरासतका,
मैं ही अकेला मालिक हूँ...
देखा गौरसे तो,
हर कोई रईस निकला.......!

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