10 January 2020

5306 - 5310 मुहब्बत मुस्कुराहट लफ्ज़ किस्सा नजरअंदाज अहमियत शर्मिंदा नफरत शायरी


5306
तुझसे नफरत,
बहुत जरुरी थी...
ये करते तो,
मुहब्बत हो जाती...!

5307
मत पुछो की,
मेरा कारोबार क्या हैं...
मुस्कुराहटकी छोटीसी दुकान हैं,
नफरतके बाजारमें.......!

5308
आओ नफरतका किस्सा,
दो लफ्ज़ोमें तमाम करें;
मुहब्बत जहाँ भी मिले,
उसे झुकके सलाम करें...!

5309
सके नफरतके बदलेमें,
नफरत उसे भी जो देते...
तो एहमियत बढ जाती,
उसके नफरतकी...!
नजरअंदाज करके हमने,
उसके नफरतको सस्ता कर दिया...!!!

5310
नफरत करके क्यो बढ़ाते हो,
अहमियत किसीकी...
माफ करके शर्मिंदा करनेका,
तरीका भी तो कुछ बुरा नहीं...!

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