1 January 2020

5266 - 5270 इश्क़ बात मुहब्बत होश सुर्ख लब रुखसार नज़रें शबाब शराब महफिल मयखाने शायरी


5266
मुहब्बतसे गुजरा हूँ,
अब मयखानेमें जाना है;
दोनोंका असर एक ही है,
बस होश ही तो गवाना है...

5267
ये सुर्ख लब, ये रुखसार,
और ये मदहोश नज़रें...
इतने कम फासलों पर तो,
मयखाने भी नहीं होते.......!

5268
कभी मंदिरोंमें,
इश्क़की बातें सुनी मैंने...
मयखानोंमें हर तरफ,
इश्क़के ही चर्चे थे...

5269
मयखानेमें अब ऐसी बात नहीं...
तेरे शबाबसी बात राबमें नहीं...!

5270
कई महफिलोंमें गया हूँ,
हजारों मयखाने देखे...
तेरी आँखोंसा शाकी कहीं नहीं,
गुजरें कहीं जमाने देखे...

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