31 January 2020

5406 - 5410 वफ़ा जन्नत वजह ख़्वाब दुनिया तोहफे कर्ज वक्त शायरी


5406
बस दो ही गवाह थे,
मेरी वफ़ाके...
वक्त और वो,
एक गुज़र गया दूसरा मुकर गया...

5407
सहेलियां जन्नत हैं या दौलत पता नहीं,
पर सहेलियां सुकून होती हैं;
वक्त कितना भी कठिन हो,
वह मुस्कुराहट की वजह होती हैं;
ये मेरे ख़्वाबोंकी दुनिया नहीं सही लेकिन,
अब गया हूँ तो दो दिन क़याम करता चलूँ I
शादाब लाहौरी

5408
कितने चालाक हैं,
कुछ मेरे अपने भी...
तोहफे मे घडी तो दी,
मगर वक्त नही...

5409
खास हैं वो लोग,
इस दुनियामें जो...
वक्त आने पर,
वक्त दिया करते हैं...

5410
सदा उनके कर्जदार रहिये,
जो आपके लिये...,
कभी खुदका वक्त नहीं देखते

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