5386
उलझ गया था
उनके दुपट्टेका,
कोना मेरी घड़ीसे...
वक़्त तबसे जो
रुका हैं,
तो अब तक
रुका ही पड़ा
है...!
5387
तेरे आनेकी
उम्मीद,
आज भी दिलमें
जिंदा हैं...
इस कदर इंतजार
किया हैं तेरा,
कि वक़्त भी
शर्मिंदा हैं...
5388
मांगनाही छोङ
दिया हमने,
वक़्त किसीसे...
क्या पता,
उनके पास इंकारका
भी वक़्त ना
हो...
5389
जैसे कहीं रखकर
भूल गया हूँ,
वो बेफिक्र वक़्त,
अब कहीं मिलता
नहीं.......
5390
वक़्त सोनेंका था...
और यादें जाग उठी !!!
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