27 January 2020

5386 - 5390 दिल उम्मीद इंतजार यादें बेफिक्र इंकार वक़्त शायरी


5386
उलझ गया था उनके दुपट्टेका,
कोना मेरी घड़ीसे...
वक़्त तबसे जो रुका हैं,
तो अब तक रुका ही पड़ा है...!

5387
तेरे आनेकी उम्मीद,
आज भी दिलमें जिंदा हैं...
इस कदर इंतजार किया हैं तेरा,
कि वक़्त भी शर्मिंदा हैं...

5388
मांगनाही छोङ दिया हमने,
वक़्त किसीसे...
क्या पता,
उनके पास इंकारका भी वक़्त ना हो...

5389
जैसे कहीं रखकर भूल गया हूँ,
वो बेफिक्र वक़्त,
अब कहीं मिलता नहीं.......

5390
वक़्त सोनेंका था...
और यादें जाग उठी !!!

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